मेरठराजनीति

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को साधने की छिड़ी नई जंग

Meerut: प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश-जयंत की पहली रैली में किसानों का मुद्दा छाया रहा। पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह एवं बाबा टिकैत का जिक्र करते हुए किसानों की नब्ज को छुआ। हालांकि रैली में सीटों के बंटवारे को लेकर कोई तस्वीर सामने नहीं आई।

मेरठ:  पश्चिमी उप्र का मिजाज प्रदेश की चुनावी दिशा बदलेगा। अखिलेश यादव और जयंत सिंह की अगुआई में गठबंधन की पहली रैली में साफ है कि किसानों को साधने की होड़ तेज हो रही है। कृषि कानून वापस होने के बाद गठबंधन जहां किसानों का पारा कम नहीं होने देना चाहता, वहीं भाजपा कानून वापसी का राजनीतिक फायदा उठाने में जुटी है।

रालोद को बड़ी सफलता

पंचायत चुनावों में रालोद को बड़ी सफलता मिली। वहीं, भाजपा लगातार किसानों के बीच संपर्क अभियान चला रही है। मोदी-योगी की नीतियों एवं कल्याणकारी योजनाओं के अलावा पार्टी पिछले चार साल में रिकार्ड गन्ना भुगतान, चीनी मिलों के विस्तार, किसान सम्मान निधि एवं भूमि परीक्षण समेत कई काम गिनवा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञ पश्चिम उप्र की सियासी चाबी किसानों के हाथ में मान रहे हैं। उधर, कांग्रेस और बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। फिलहाल, पश्चिमी उप्र में किसानों का मूड भांपना आसान नहीं होगा।

रैली में छाया रहा किसानों का मुद्दा

2022 के विस चुनावों से पहले अखिलेश-जयंत की पहली संयुक्त रैली में किसानों का मुद्दा छाया रहा। अखिलेश ने किसानों के पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह एवं बाबा टिकैत का जिक्र करते हुए नब्ज छुआ, वहीं कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ रहे डा. राम मनोहर लोहिया की चर्चा कर साफ संदेश दिया। 2014 लोकसभा चुनावों के बाद राजनीतिक रूप से हाशिए पर पहुंच चुका रालोद किसान आंदोलन के सहारे अपनी सियासी जमीन को हरा-भरा करने में जुटा है। 2019 लोस चुनावों में अखिलेश-जयंत ने हाथ मिलाया था, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहा, लेकिन अब स्थिति बदली है। चौ. अजित सिंह के निधन के बाद जयंत के लिए सहानुभूति की लहर मानी जा रही है। वहीं भाकियू के आंदोलन से रालोद ने अपनी राजनीतिक जमीन बना ली।

सीटों पर नहीं खोले गए पत्ते

सपा-रालोद गठबंधन की पहली रैली हो गई, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर कोई तस्वीर सामने नहीं आई। रैली में सपाइयों एवं रालोद कार्यकर्ताओं की संख्या तकरीबन समान थी। दोनों दलों के समर्थक गठबंधन की डिजाइन के बारे में सुनना चाह रहे थे, लेकिन अखिलेश-जयंत ने पत्ते नहीं खोले। जाट बहुल सीटों पर रालोद का दावा मजबूत बताया जा रहा है, जबकि 2007 विस चुनावों में पश्चिम में बड़ी संख्या में सीटें जीतने वाली सपा के लिए सीटों का चयन मुश्किल होगा। कयास है कि रालोद ने करीब 35 सीटों की मांग की है, जबकि यहां पर पांच साल से चुनावी तैयारी में जुटे सपाई चेहरों को संभालने की चुनौती होगी। हालांकि रालोद प्रमुख जयंत सिंह ने कहा है कि गठबंधन बड़े मन के साथ किया जाता है, जिसमें सीटों से ज्यादा महत्व समन्वय का है। उधर, गठबंधन की चाल देखते हुए भाजपा अपने पत्ते खोलेगी।

मेरठ:  पश्चिमी उप्र का मिजाज प्रदेश की चुनावी दिशा बदलेगा। अखिलेश यादव और जयंत सिंह की अगुआई में गठबंधन की पहली रैली में साफ है कि किसानों को साधने की होड़ तेज हो रही है। कृषि कानून वापस होने के बाद गठबंधन जहां किसानों का पारा कम नहीं होने देना चाहता, वहीं भाजपा कानून वापसी का राजनीतिक फायदा उठाने में जुटी है।

रालोद को बड़ी सफलता

पंचायत चुनावों में रालोद को बड़ी सफलता मिली। वहीं, भाजपा लगातार किसानों के बीच संपर्क अभियान चला रही है। मोदी-योगी की नीतियों एवं कल्याणकारी योजनाओं के अलावा पार्टी पिछले चार साल में रिकार्ड गन्ना भुगतान, चीनी मिलों के विस्तार, किसान सम्मान निधि एवं भूमि परीक्षण समेत कई काम गिनवा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञ पश्चिम उप्र की सियासी चाबी किसानों के हाथ में मान रहे हैं। उधर, कांग्रेस और बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। फिलहाल, पश्चिमी उप्र में किसानों का मूड भांपना आसान नहीं होगा।

रैली में छाया रहा किसानों का मुद्दा

2022 के विस चुनावों से पहले अखिलेश-जयंत की पहली संयुक्त रैली में किसानों का मुद्दा छाया रहा। अखिलेश ने किसानों के पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह एवं बाबा टिकैत का जिक्र करते हुए नब्ज छुआ, वहीं कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ रहे डा. राम मनोहर लोहिया की चर्चा कर साफ संदेश दिया। 2014 लोकसभा चुनावों के बाद राजनीतिक रूप से हाशिए पर पहुंच चुका रालोद किसान आंदोलन के सहारे अपनी सियासी जमीन को हरा-भरा करने में जुटा है। 2019 लोस चुनावों में अखिलेश-जयंत ने हाथ मिलाया था, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहा, लेकिन अब स्थिति बदली है। चौ. अजित सिंह के निधन के बाद जयंत के लिए सहानुभूति की लहर मानी जा रही है। वहीं भाकियू के आंदोलन से रालोद ने अपनी राजनीतिक जमीन बना ली।

सीटों पर नहीं खोले गए पत्ते

सपा-रालोद गठबंधन की पहली रैली हो गई, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर कोई तस्वीर सामने नहीं आई। रैली में सपाइयों एवं रालोद कार्यकर्ताओं की संख्या तकरीबन समान थी। दोनों दलों के समर्थक गठबंधन की डिजाइन के बारे में सुनना चाह रहे थे, लेकिन अखिलेश-जयंत ने पत्ते नहीं खोले। जाट बहुल सीटों पर रालोद का दावा मजबूत बताया जा रहा है, जबकि 2007 विस चुनावों में पश्चिम में बड़ी संख्या में सीटें जीतने वाली सपा के लिए सीटों का चयन मुश्किल होगा। कयास है कि रालोद ने करीब 35 सीटों की मांग की है, जबकि यहां पर पांच साल से चुनावी तैयारी में जुटे सपाई चेहरों को संभालने की चुनौती होगी। हालांकि रालोद प्रमुख जयंत सिंह ने कहा है कि गठबंधन बड़े मन के साथ किया जाता है, जिसमें सीटों से ज्यादा महत्व समन्वय का है। उधर, गठबंधन की चाल देखते हुए भाजपा अपने पत्ते खोलेगी।

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