मेरठ

औघड़नाथ मंदिर में हुई थी अंग्रेज दमनकारी नीतियों के खिलाफ क्रांति शुरू, जानिए क्यों खास है औघड़नाथ मंदिर का यह कुआं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के औघड़नाथ मंदिर में विजिट करने के बाद अब युवाओं में 10 मई 1857 की क्रांति के इतिहास को जानने के लिए जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी है। उत्तर प्रदेश के मेरठ औघड़नाथ मंदिर से ही अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ क्रांति शुरू हुई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के औघड़नाथ मंदिर में विजिट करने के बाद अब युवाओं में 10 मई 1857 की क्रांति के इतिहास को जानने के लिए जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी है। उत्तर प्रदेश के मेरठ औघड़नाथ मंदिर से ही अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ क्रांति शुरू हुई थी। जिसका नजारा आपको मेरठ Meerut के औघड़नाथ मंदिर में देखने को मिलेगा।

 कहा जाता है कि बाबा द्वारा सैनिकों को पानी पिलाया जाता था।  कुएं को देखने के लिए बड़ी संख्या में युवाओं में जिज्ञासा देखने को मिल रही है, जो औघड़नाथ मंदिर में तो कई बार आ चुके हैं, भोले बाबा के दर्शन कर चुके हैं, लेकिन कुआं नहीं देखा। 

बड़ी संख्या में युवा यहां भोले बाबा के दर्शन करने तो हर बार आते हैं, सावन में बाबा को जल अर्पित भी करते हैं, यह भी पता है कि इसी मंदिर से 10 मई 1857 को क्रांति की शुरुआत हुई थी। लेकिन परिसर में जो शहीद स्मारक बना हुआ है,उसके नीचे ही एक कुआं है इसके बारे मेंउन्हें नहीं पता था। युवाओं ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विजिट के बाद उन्हें इस बारे में जानकारी लगी।

युवा मुख्य तौर पर कुएं को देखने आ रहे हैं, जिससे अन्य लोगों को भी इसकी जानकारी दे सकें मंदिर के पुजारी शैलेंद्र त्रिपाठी की अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजिट के बाद दूसरे दिन ही काफी बड़ी संख्या में युवा मंदिर पहुंचेसभी युवाओं का सवाल यही था कि आखिर वह कौन स्थान है, जहां बाबा पानी पिलाते थे

कैसे हुई थी क्रांति शुरू 

10 मई 1857 को ही मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई। 85 सैनिकों के विद्रोह से जो चिंगारी निकली वह धीरे-धीरे ज्वाला बन गई, इतिहासकारों की मानें तो मंदिर परिसर को पहले काली पलटन कहा जाता था, मंदिर में ही एक कुआं बना हुआ था। मंदिर में एक बाबा सैनिकों को पानी पिलाते थे, वह सैनिक को बताते थे कि जिन कारतूस का भी उपयोग कर रहे हैं। उसमें गाय और सूअर की चर्बी है। जब इस बात की जानकारी सैनिकों को लगी,  तो उन्होंने गाय और सूअर के मांस की चर्बी लगा कारतूस चलाने से मना कर
दिया। मना करने पर 85 सैनिकों ने विद्रोह किया और उनके कोर्ट मार्शल के बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया था।

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